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स॒हस्रे॒ पृष॑तीना॒मधि॑ श्च॒न्द्रं बृ॒हत्पृ॒थु । शु॒क्रं हिर॑ण्य॒मा द॑दे ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sahasre pṛṣatīnām adhi ścandram bṛhat pṛthu | śukraṁ hiraṇyam ā dade ||

पद पाठ

स॒हस्रे॑ । पृष॑तीनाम् । अधि॑ । च॒न्द्रम् । बृ॒हत् । पृ॒थु । शु॒क्रम् । हिर॑ण्यम् । आ । द॒दे॒ ॥ ८.६५.११

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:65» मन्त्र:11 | अष्टक:6» अध्याय:4» वर्ग:47» मन्त्र:5 | मण्डल:8» अनुवाक:7» मन्त्र:11


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शिव शंकर शर्मा

प्रथम अन्नादिक सब वस्तु परमात्मा को समर्पणीय हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) हे परमदेव ईश्वर ! (नरः) कर्मतत्त्ववित् कर्मपरायण जन (ते) तेरे लिये (इदम्+सोम्यम्+मधु) इस सोमसम्बन्धी मधुर रस को (अद्रिभिः) शिला द्वारा (अधुक्षन्) निकालते हैं। (तत्) उसको (जुषाणः) प्रसन्न होकर (पिब) ग्रहण कीजिये ॥८॥
भावार्थभाषाः - इससे यह शिक्षा दी जाती है कि पर्वत के टुकड़ों से अन्न प्रस्तुत करने के लिये अनेक साधन बनाने चाहियें, जैसे चक्री और मसाला आदि पीसने के लिये शिला और खल बनाए जाते हैं। जब-२ कोई नूतन वस्तु प्रस्तुत हो, तब-२ ईश्वर के नाम पर प्रथम उस वस्तु को रक्खे, तब सब मिल कर ग्रहण करें। अग्नि में होमना यह सहजोपाय है ॥८॥
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शिव शंकर शर्मा

प्रथममन्नादि सर्वं वस्तु परमात्मने समर्पणीयम्।

पदार्थान्वयभाषाः - हे इन्द्र ! नरः=कर्मनेतारो जनाः। ते=त्वदर्थम्। इदं+सोम्यं=सोमसम्बन्धि। मधु=मधुरं वस्तु। अद्रिभिः सह। अधुक्षन्=दुग्धवन्तः। तत्। जुषाणः=प्रसीदन्। पिब=गृहाण ॥८॥